Queen of Chittor Maharani Padmini Real Life Story in Hindi राजस्थान में चित्तौड़ के राजा राणा लक्ष्मण सिंह थे। उन्हें रतन सिंह नाम से भी पुकारा गया है। उनकी रानी पद्मिनी अद्वितीय सुंदरी थी।
किसी कवि ने सच ही कहा है कि "राजपूताने की मिट्टी खून से सनी हुई होने के कारण लाल है।" यहाँ के लोगों ने, स्त्रियों और पुरुषों ने इतने बलिदान दिए हैं कि भूमि का कोई भी कोना उस बलिदान से अछूता नहीं रहा है।
चित्र साभार : www.gyandarpan.com |
वह उसे पाने को आतुर हो उठा। उसने विशाल सेना लेकर चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई शुरू कर दी। वह किसी भी कीमत पर पद्मिनी को अपनी रानी बनाना चाहता था, पर जब बल से उसकी दाल न गली तो उसने छल का सहारा लेकर राजा लक्ष्मण सिंह को बंदी बना लिया।
महारानी पद्मिनी ने गोरा और बादल के साथ मिलकर राजा को अल्लाउद्दीन के कब्जे से छुड़ाने के लिए एक योजना बनाई। योजनानुसार पद्मिनी ने अल्लाउद्दीन को कहला भेजा कि वह उससे मिलने आ रही हैं। इधर डोलियों में एक - एक योद्धा सज कर बैठा। कहार बने वीर सैनिक। डोलियों को देखकर अल्लाउद्दीन ख़ुशी से नाचने लगा। वह पद्मिनी का स्वप्न देखने लगा।
इधर गोरा अल्लाउद्दीन के पास जाकर बोला, "लोक सुंदरी हमारी महारानी पल भर के लिए अपने पति लक्ष्मण सिंह से मिलना चाहती हैं।" अपने अधपके बालों को सहलाते हुए अल्लाउद्दीन ने कहा, "मुझे तुम्हारी बात और प्यारी की इच्छा दोनों मंज़ूर हैं।" लक्ष्मण सिंह को छोड़ दिया गया। योजनानुसार पद्मिनी और राजा लक्ष्मण सिंह वहां से सुरक्षित निकल गए।
वहाँ भयंकर मार काट मच गई, गोरा मारा गया और अल्लाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ी कहारों से अपमानित और पराजित हुआ। अल्लाउद्दीन अपने इस अपमान का बदला लेने और पद्मिनी को पाने पुन: एक बहुत विशाल सेना लेकर चित्तौड़गढ़ पर हमला करने आया।
अल्लाउद्दीन बड़ा रूप लालची दानव था। उसके फाटक पर खून चूते हुए कटे सिर टंगे रहते थे। तड़प कर मरते हुए मनुष्यों को देख कर वह बहुत खुश होता था। उसने आदेश दिया था कि जो सैनिक वापिस हारकर लौटेगा तो वो उसकी बोटी - बोटी काट कर कुत्तों के सामने डाल देगा।
उधर राजपूत भी चौकन्ने थे। राजपूतों ने युद्ध में बड़ी वीरता दिखाई। कई बार शत्रुओं के दाँत खट्टे किये उन्हें पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा, पर शत्रु सेना अनगिनत थी। घमासान युद्ध कई दिन तक चला। उधर राजा लक्ष्मण सिंह को स्वप्न में देवी ने प्रकट होकर कहा, "मैं भूखी हूँ, मुझे राजरक्त चाहिए।"
प्रात:काल राजा लक्ष्मण सिंह ने अपने सभी पुत्रों और सरदारों को अपना स्वप्न बताया। सभी रण के लिए उतावले बैठे थे। इधर पुरुषों ने केसरिया बाना धारण किया उधर क्षत्राणियों ने जौहर की तैयारी की। हाथों में नंगी तलवारें लेकर राजपूत शत्रु सेना पर टूट पड़े और गाज़र मूली की तरह उसे काटने लगे। अंत में राजा लक्ष्मण सिंह के स्वाहा हो जाने का समाचार सुन राजपूत रमणियाँ श्रृंगार कर जली चिता में कूदने लगी। स्वाहा-स्वाहा का स्वर ही बस सुनाई दे रहा था।
इधर राजपूत अपनी बलि दे रहे थे, उधर कुल वधुएँ माता पार्वती के समक्ष यह कहकर - "माँ दक्षयज्ञ के कुंड में जैसे आप कूदी थीं हमें भी वही शक्ति दो।" धधकती चिता में कूद-कूद कर अपनी आहुति दे रही थीं। जब तक एक भी राजपूत बचा वह युद्ध करता रहा है।
कहा जाता है कि अल्लाउद्दीन जब महारानी पद्मिनी को खोजते हुए चित्तौड़गढ़ में घुसा तो उसके हाथ के भाले में राजा लक्ष्मण सिंह का का कटा सिर टंगा था। चिता की लपटों में उसे पद्मिनी की छाया दिखाई दी। भय से लक्ष्मण सिंह का सिर भाले सहित उसके हाथ से छूट कर आग में जा गिरा। अल्लाउद्दीन खिलजी पागलों की तरह चिल्लाता हुआ दिल्ली लौट आया और कुछ समय बाद उसी गम में मर गया।
महारानी पद्मिनी का बलिदान इतिहास में सदैव के लिए अमर हो गया।
महारानी पद्मिनी ने गोरा और बादल के साथ मिलकर राजा को अल्लाउद्दीन के कब्जे से छुड़ाने के लिए एक योजना बनाई। योजनानुसार पद्मिनी ने अल्लाउद्दीन को कहला भेजा कि वह उससे मिलने आ रही हैं। इधर डोलियों में एक - एक योद्धा सज कर बैठा। कहार बने वीर सैनिक। डोलियों को देखकर अल्लाउद्दीन ख़ुशी से नाचने लगा। वह पद्मिनी का स्वप्न देखने लगा।
इधर गोरा अल्लाउद्दीन के पास जाकर बोला, "लोक सुंदरी हमारी महारानी पल भर के लिए अपने पति लक्ष्मण सिंह से मिलना चाहती हैं।" अपने अधपके बालों को सहलाते हुए अल्लाउद्दीन ने कहा, "मुझे तुम्हारी बात और प्यारी की इच्छा दोनों मंज़ूर हैं।" लक्ष्मण सिंह को छोड़ दिया गया। योजनानुसार पद्मिनी और राजा लक्ष्मण सिंह वहां से सुरक्षित निकल गए।
वहाँ भयंकर मार काट मच गई, गोरा मारा गया और अल्लाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ी कहारों से अपमानित और पराजित हुआ। अल्लाउद्दीन अपने इस अपमान का बदला लेने और पद्मिनी को पाने पुन: एक बहुत विशाल सेना लेकर चित्तौड़गढ़ पर हमला करने आया।
अल्लाउद्दीन बड़ा रूप लालची दानव था। उसके फाटक पर खून चूते हुए कटे सिर टंगे रहते थे। तड़प कर मरते हुए मनुष्यों को देख कर वह बहुत खुश होता था। उसने आदेश दिया था कि जो सैनिक वापिस हारकर लौटेगा तो वो उसकी बोटी - बोटी काट कर कुत्तों के सामने डाल देगा।
उधर राजपूत भी चौकन्ने थे। राजपूतों ने युद्ध में बड़ी वीरता दिखाई। कई बार शत्रुओं के दाँत खट्टे किये उन्हें पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा, पर शत्रु सेना अनगिनत थी। घमासान युद्ध कई दिन तक चला। उधर राजा लक्ष्मण सिंह को स्वप्न में देवी ने प्रकट होकर कहा, "मैं भूखी हूँ, मुझे राजरक्त चाहिए।"
प्रात:काल राजा लक्ष्मण सिंह ने अपने सभी पुत्रों और सरदारों को अपना स्वप्न बताया। सभी रण के लिए उतावले बैठे थे। इधर पुरुषों ने केसरिया बाना धारण किया उधर क्षत्राणियों ने जौहर की तैयारी की। हाथों में नंगी तलवारें लेकर राजपूत शत्रु सेना पर टूट पड़े और गाज़र मूली की तरह उसे काटने लगे। अंत में राजा लक्ष्मण सिंह के स्वाहा हो जाने का समाचार सुन राजपूत रमणियाँ श्रृंगार कर जली चिता में कूदने लगी। स्वाहा-स्वाहा का स्वर ही बस सुनाई दे रहा था।
चित्र साभार : bharatdiscovery.org |
कहा जाता है कि अल्लाउद्दीन जब महारानी पद्मिनी को खोजते हुए चित्तौड़गढ़ में घुसा तो उसके हाथ के भाले में राजा लक्ष्मण सिंह का का कटा सिर टंगा था। चिता की लपटों में उसे पद्मिनी की छाया दिखाई दी। भय से लक्ष्मण सिंह का सिर भाले सहित उसके हाथ से छूट कर आग में जा गिरा। अल्लाउद्दीन खिलजी पागलों की तरह चिल्लाता हुआ दिल्ली लौट आया और कुछ समय बाद उसी गम में मर गया।
महारानी पद्मिनी का बलिदान इतिहास में सदैव के लिए अमर हो गया।
साभार : स्वदेश संस्कृति किताब से
मेरे द्वारा पढ़ी गयी कहानियों में से एक
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