Khan Abdul Gaffar Khan खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्म सन 1890 ई. में सरहदी सूबे के उतमान जई नामक गाँव में बेहराम खान के यहाँ हुआ था। अब्दुल गफ्फार की माँ विनम्र और धीर स्वभाव की धर्मपरायण महिला थी। अब्दुल गफ्फार जब 5 - 6 वर्ष के थे, तब उन्हें मस्जिद में मुल्ला के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेज दिया, परन्तु अब्दुल गफ्फार के अनपढ़ माता - पिता इतने भर से संतुष्ट नहीं थे। वे चाहते थे कि अब्दुल गफ्फार अपने बड़े भाई डॉक्टर खान साहब की तरह अच्छी पढ़ाई लिखाई करे। इसलिए 8 वर्ष के अब्दुल गफ्फार को अपने बड़े भाई के स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया। इसके बाद वे पेशावर गए और इसके बाद अलीगढ़ के एक कॉलेज में प्रवेश ले लिया।
खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्म सन 1890 ई. में सरहदी सूबे के उतमान जई नामक गाँव में बेहराम खान के यहाँ हुआ था। अब्दुल गफ्फार की माँ विनम्र और धीर स्वभाव की धर्मपरायण महिला थी। अब्दुल गफ्फार जब 5 - 6 वर्ष के थे, तब उन्हें मस्जिद में मुल्ला के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेज दिया, परन्तु अब्दुल गफ्फार के अनपढ़ माता - पिता इतने भर से संतुष्ट नहीं थे। वे चाहते थे कि अब्दुल गफ्फार अपने बड़े भाई डॉक्टर खान साहब की तरह अच्छी पढ़ाई लिखाई करे। इसलिए 8 वर्ष के अब्दुल गफ्फार को अपने बड़े भाई के स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया। इसके बाद वे पेशावर गए और इसके बाद अलीगढ़ के एक कॉलेज में प्रवेश ले लिया।
खान अब्दुल गफ्फार खान का राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब सन 1928 ई. में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू से हुई।
अमानुल्ला के सामाजिक सुधारों से प्रभावित होकर खान अब्दुल गफ्फार खान ने 1929 ई. में एक सामाजिक संस्था की स्थापना की - "खुदाई खिदमतगार" जिसका अर्थ है "खुदा या भगवान की सेवा करने वाले"। उस समय पठानों को हिंसा की लत लग चुकी थी। इसलिए हर "खुदाई खिदमतगार"को शपथ दिलाई जाती थी कि - "मैं हिंसा नहीं करूँगा, न ही किसी प्रकार का बदला लूँगा, मुझ पर चाहे कोई कितना ही जुल्म करे, मैं उसे क्षमा कर दूँगा, मैं आपसी - कटुता, दलबन्दी शत्रुता और गृहयुद्ध नहीं करूँगा और पख्तून को अपना भाई और मित्र समझूँगा।"
इस संस्था के सदस्य लाल वस्त्र पहनते थे इसलिए इनका नाम "लाल कुर्ती दल" भी पड़ गया था।
वर्ष 1947, खान अब्दुल गफ्फार खान के लिए यह सबसे दर्द भरा वर्ष था। कारण था कि कांग्रेस ने जून 1947 ई. में भारत विभाजन की अँग्रेज़ी योजना को पूर्ण मंज़ूरी दे दी थी। इस योजना के तहत सरहदी सूबे में जनमत संग्रह भी कराया जाना था कि वह पाकिस्तान के साथ रहना चाहता है या भारत के साथ। अब्दुल गफ्फार को यह विश्वासघात लगा, उन्होंने कांग्रेस से कहा - "आपने जानते हुए भी हमें 'भेड़ियों' के सामने फेंक दिया है। जनमत संग्रह तो वर्ष भर पहले ही हो चुका था।" अत: इस बार खुदाई खिदमतगारों ने जनमत संग्रह के बहिष्कार करने कर डाला। उनकी शर्त थी कि - "ठीक है जनमत संग्रह भी हो जाना चाहिए।" परन्तु - "पठान लोग पाकिस्तान में रहना चाहते हैं या उन्हें आजाद पख्तूनिस्तान चाहिए।" परन्तु यह शर्त ठुकरा दी गई। बहिष्कार के बाद अल्प बहुमत से सरहदी सूबे के लोगों ने विभाजन मंजूर कर लिया। खान अब्दुल गफ्फार खान ने एक बार महात्मा गांधी से आँसू भरी आँखों से कहा था - "पर गांधी को तो आपने मार दिया" यह दिल तोड़ने वाले शब्द थे, एक गांधी के दूसरे गांधी से। 30 जुलाई, सन 1947 ई. को दिल्ली में दोनों महापुरूषों ने एक दूसरे से हमेशा - हमेशा के अलविदा कह दिया और अन्तत : वे फिर कभी नहीं मिले।
भारत के प्रति बादशाह खान का लगाव और सम्मान हमेशा रहा। भारत के प्रति उनका अपार प्रेम और स्नेह तथा उनके योगदान को देखते हुए सन 1969 ई. में "नेहरू शांति पुरस्कार" और 14 अगस्त, 1987 ई. को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" से विभूषित किया गया। आजादी के बाद क्रमश : 1969, 1980, 1981, 1985 और 1987 में पाँच बार वह भारत आए।
बादशाह खान और सीमान्त गांधी (फ्रंटियर गांधी) जैसे न जाने कितने ही नामों से लोकप्रिय खान अब्दुल गफ्फार खान उन महान आदर्शों को समर्पित अन्तिम भारतीय थे, जो स्वतन्त्रता के साथ ही गुलामी के गर्त में चले गए। उन्होंने जिस स्वतन्त्रता के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया था। उसकी प्राप्ति के बाद भी वह पाकिस्तान की जेलों में सजा काटते रहे।
उन्हें अपने जीवन के अन्तिम वर्ष एक "राष्ट्रविहीन" नागरिक के रूप में बिताने पड़े और उन्होंने अन्तिम साँस भी उस देश में ली, जो कभी भी उनका नहीं रहा। 20 जनवरी, सन 1988 ई. में पेशावर (पाकिस्तान) में उनका इंतकाल हो गया। 98 वर्ष की लम्बी आयु प्राप्त करने वाला बादशाह खान और सीमान्त गांधी सदा - सदा के लिए इस दुनिया से रुखसत हो गया।
भारत के प्रति बादशाह खान का लगाव और सम्मान हमेशा रहा। भारत के प्रति उनका अपार प्रेम और स्नेह तथा उनके योगदान को देखते हुए सन 1969 ई. में "नेहरू शांति पुरस्कार" और 14 अगस्त, 1987 ई. को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" से विभूषित किया गया। आजादी के बाद क्रमश : 1969, 1980, 1981, 1985 और 1987 में पाँच बार वह भारत आए।
बादशाह खान और सीमान्त गांधी (फ्रंटियर गांधी) जैसे न जाने कितने ही नामों से लोकप्रिय खान अब्दुल गफ्फार खान उन महान आदर्शों को समर्पित अन्तिम भारतीय थे, जो स्वतन्त्रता के साथ ही गुलामी के गर्त में चले गए। उन्होंने जिस स्वतन्त्रता के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया था। उसकी प्राप्ति के बाद भी वह पाकिस्तान की जेलों में सजा काटते रहे।
उन्हें अपने जीवन के अन्तिम वर्ष एक "राष्ट्रविहीन" नागरिक के रूप में बिताने पड़े और उन्होंने अन्तिम साँस भी उस देश में ली, जो कभी भी उनका नहीं रहा। 20 जनवरी, सन 1988 ई. में पेशावर (पाकिस्तान) में उनका इंतकाल हो गया। 98 वर्ष की लम्बी आयु प्राप्त करने वाला बादशाह खान और सीमान्त गांधी सदा - सदा के लिए इस दुनिया से रुखसत हो गया।
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