पिंगली वेंकैया - जिन्होंने हमारे भारत का राष्ट्र ध्वज तिरंगा बनाकर गौरव बढ़ाया Pingali Venkayya (Venkaiah) Life Success Story Biography in hindi,
पिंगली वेंकैया (Pingali Venkayya / Venkaiah) का जन्म आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के भटलापेनुमरु (अब मचलीपट्टनम) गांव में रहने वाले हनुमंथा रायडू और वेंकट रत्नम्मा के घर 2 अगस्त, सन् 1876 ई. को हुआ था। आज इस जगह को मचलीपट्टनम के नाम से जाना जाता है। वेंकैया तेलुगु ब्राह्मण परिवार के थे और उनके पिताजी हमेशा से ही चाहते थे कि पिंगली गांव के साथ-साथ देश का नाम भी रोशन करें। छह भाईयों और दो बहनों में पिंगली सबसे बड़े थे। चल्लापल्ली में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने मचलीपट्टनम के हिन्दू हाईस्कूल में दाखिला लिया। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे कोलंबो चले गए। वेंकैया 19 साल की उम्र में मुंबई चले गए थे। वहां जाने के बाद उन्होंने सेना में नौकरी कर ली, जहां से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया। सन् 1899 ई. से सन् 1902 ई. के बीच दक्षिण अफ्रीका के 'बायर युद्ध' में उन्होंने भाग लिया था। उसके बाद दक्षिण अफ्रीका में एक कांफ्रेंस के दौरान ही पिंगली की महात्मा गांधी से मुलाकात हुई। वेंकैया उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए और भारत वापिस लौटने पर मुंबई में रेलवे गार्ड की नौकरी करने लगे। इसी बीच मद्रास (अब चेन्नई) में प्लेग नामक महामारी के चलते कई लोगों की मृत्यु हो गई, जिससे उनका मन व्याकुल हो उठा और उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। वहां से वे मद्रास में प्लेग रोग निर्मूलन इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हो गए।
कई विषयों के जानकार और डायमंड वेंकैया
पिंगली वेंकैया कई विषयों के ज्ञाता थे, विशेषकर उन्हें भू-विज्ञान (Geology) और कृषि विज्ञान (Agriculture Science) से विशेष लगाव था। वह हीरे की खदानों के विशेषज्ञ थे। पिंगली डायमंड माइनिंग (Diamond Mining) के लिए भी बेहद प्रसिद्ध थे। कहा जाता है कि वह माइन से हीरे बरसा देते थे इसलिए उनका दूसरा नाम 'डायमंड वेंकैया' (Diamond Venkayya) पड़ गया। वेंकैया का सफर इतना ही छोटा नहीं था।
भाषाओं के ज्ञाता और वेंकैया कपास
संस्कृत, उर्दू एवं हिंदी आदि भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। सन् 1904 ई. में जब जापान ने रूस को हरा दिया था। इस समाचार से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत जापानी भाषा भी सीख ली। उधर महात्मा गांधी जी का स्वदेशी आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन ने भी पिंगली वेंकैया के मन को बहुत प्रभावित किया। उस समय उन्होंने अमेरिका से कंबोडिया नामक कपास के बीज का आयात किया और इस बीज को भारत के कपास बीज के साथ अंकुरित कर भारतीय संकरित कपास का बीज तैयार किया। उनके इस शोध कार्य के लिये बाद में इन्हें 'वेंकैया कपास' के नाम से जाना जाने लगा।
भारत का तिरंगा झंडा बनाने का सफर | Indian National Flag Tiranga was designed by Pingali Venkayya / Venkaiah
महात्मा गांधी से मिलने के बाद ही उन्होंने सोच लिया था कि अपने देश के लिए कुछ ऐसा करना है जिससे देश का मान बढ़े। काकीनाडा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कांफ्रेंस चल रही थी। उसी समय पिंगली वेंकैया ने सुझाव दिया कि भारत का भी राष्ट्रीय ध्वज होना चाहिए। महात्मा गांधी को उनका यह प्रस्ताव बहुत पसंद आया। जिसके बाद महात्मा गांधी ने ये घोषणा की कि वेंकैया ही राष्ट्रीय ध्वज की डिजाइनिंग करेंगे। इसके बाद वेंकैया कड़ी मेहनत के साथ इस कार्य में लग गए।
सन् 1916 ई. में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे राष्ट्र ध्वज की कल्पना की जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बांध सके। उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर 'नेशनल फ्लैग मिशन' का गठन किया। पिंगली वेंकैया जी शुरुआत में लाल और हरे रंग के की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है। विजयवाड़ा की नेशनल कांग्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने एक तीन रंगों वाला झंडा पेश किया जिसके बीच में अशोक चक्र बना हुआ था। महात्मा गांधी को उनका यह झंडा बेहद पसंद आया। परिणामस्वरूप यह झंडा आगे चलकर आधिकारिक तौर पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना।
कहते हैं कि एक राष्ट्रीय ध्वज को बनाने के लिए पिंगली वेंकैया ने करीब 30 झंडों की डिजाइन पर शोध किया था। इसके बाद ही पिंगली ने राष्ट्रपिता के सामने अपने झंडे को पेश किया। जब स्वतंत्रता संघर्ष के लिए वंदे मातरम् आंदोलन का आयोजन किया गया तब इस झंडे का प्रयोग किया गया था। राष्ट्रीय ध्वज बनाने के बाद पिंगली वेंकैया का ध्वज 'झंडा वेंकैया' के नाम से भी लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया था।
पिंगली वेंकैया भारत के सच्चे देशभक्त, महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक, डायमंड विशेषज्ञ और डिजाइनर थे। 4 जुलाई सन् 1963 ई. को विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश में उनका निधन हो गया।
कई विषयों के जानकार और डायमंड वेंकैया
पिंगली वेंकैया कई विषयों के ज्ञाता थे, विशेषकर उन्हें भू-विज्ञान (Geology) और कृषि विज्ञान (Agriculture Science) से विशेष लगाव था। वह हीरे की खदानों के विशेषज्ञ थे। पिंगली डायमंड माइनिंग (Diamond Mining) के लिए भी बेहद प्रसिद्ध थे। कहा जाता है कि वह माइन से हीरे बरसा देते थे इसलिए उनका दूसरा नाम 'डायमंड वेंकैया' (Diamond Venkayya) पड़ गया। वेंकैया का सफर इतना ही छोटा नहीं था।
भाषाओं के ज्ञाता और वेंकैया कपास
संस्कृत, उर्दू एवं हिंदी आदि भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। सन् 1904 ई. में जब जापान ने रूस को हरा दिया था। इस समाचार से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत जापानी भाषा भी सीख ली। उधर महात्मा गांधी जी का स्वदेशी आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन ने भी पिंगली वेंकैया के मन को बहुत प्रभावित किया। उस समय उन्होंने अमेरिका से कंबोडिया नामक कपास के बीज का आयात किया और इस बीज को भारत के कपास बीज के साथ अंकुरित कर भारतीय संकरित कपास का बीज तैयार किया। उनके इस शोध कार्य के लिये बाद में इन्हें 'वेंकैया कपास' के नाम से जाना जाने लगा।
भारत का तिरंगा झंडा बनाने का सफर | Indian National Flag Tiranga was designed by Pingali Venkayya / Venkaiah
महात्मा गांधी से मिलने के बाद ही उन्होंने सोच लिया था कि अपने देश के लिए कुछ ऐसा करना है जिससे देश का मान बढ़े। काकीनाडा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कांफ्रेंस चल रही थी। उसी समय पिंगली वेंकैया ने सुझाव दिया कि भारत का भी राष्ट्रीय ध्वज होना चाहिए। महात्मा गांधी को उनका यह प्रस्ताव बहुत पसंद आया। जिसके बाद महात्मा गांधी ने ये घोषणा की कि वेंकैया ही राष्ट्रीय ध्वज की डिजाइनिंग करेंगे। इसके बाद वेंकैया कड़ी मेहनत के साथ इस कार्य में लग गए।
सन् 1916 ई. में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे राष्ट्र ध्वज की कल्पना की जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बांध सके। उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर 'नेशनल फ्लैग मिशन' का गठन किया। पिंगली वेंकैया जी शुरुआत में लाल और हरे रंग के की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है। विजयवाड़ा की नेशनल कांग्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने एक तीन रंगों वाला झंडा पेश किया जिसके बीच में अशोक चक्र बना हुआ था। महात्मा गांधी को उनका यह झंडा बेहद पसंद आया। परिणामस्वरूप यह झंडा आगे चलकर आधिकारिक तौर पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना।
कहते हैं कि एक राष्ट्रीय ध्वज को बनाने के लिए पिंगली वेंकैया ने करीब 30 झंडों की डिजाइन पर शोध किया था। इसके बाद ही पिंगली ने राष्ट्रपिता के सामने अपने झंडे को पेश किया। जब स्वतंत्रता संघर्ष के लिए वंदे मातरम् आंदोलन का आयोजन किया गया तब इस झंडे का प्रयोग किया गया था। राष्ट्रीय ध्वज बनाने के बाद पिंगली वेंकैया का ध्वज 'झंडा वेंकैया' के नाम से भी लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया था।
पिंगली वेंकैया भारत के सच्चे देशभक्त, महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक, डायमंड विशेषज्ञ और डिजाइनर थे। 4 जुलाई सन् 1963 ई. को विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश में उनका निधन हो गया।
वर्ष 2009 में पिंगली वेंकैया के सम्मान में भारत सरकार ने 5 ₹ मूल्य का डाक टिकट जारी किया था।
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